पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में पंचनद शोध संस्थान द्वारा आयोजित गोष्ठी “क्या भारत को राष्ट्रपति प्रणाली अपनानी चाहिए?” (जुलाई 30, 2017) में भानु धमीजा द्वारा दिए वक्तव्य के कुछ अंश …


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सरकार की व्यवस्था के महत्त्व को कम नहीं आंकना चाहिए

आज हम भारत में बहुत कुछ कर सकते हैं।  पर यदि हमारी  शासन की प्रणाली system of government ठीक नहीं होगा तो हमारे सब प्रयास व्यर्थ हो जायेंगे।  भारत में राजनीती का स्तर , लेन देन , सरकारों का गिरना और गिराना आप सब देख रहें हैं।  Taxes की मार आप सब  झेल रहें हैं।  हमारी कचहरियों के खस्ता हाल आप सब जानते हैं। हमारे शहरों के क्या हाल हैं।  सड़कों के क्या हाल हैं।  सरकारी हस्पतालों या स्कूलों की स्थिति कैसी है।  यह सब आपसे छिपा नहीं है।

पर सरकार की व्यवस्था से और बहुत कुछ प्रभावित होता है।  हमारा दीन और ईमान।  हमारा आपसी भाईचारा।  यहाँ तक कि हमारी भगवान के प्रति सोच। यह सब भी सरकार की प्रणाली से जुड़ा है।  मैं आपको कुछ उदाहरण देता हूँ।

जब सरकार की व्यवस्था ऐसी हो कि हर ठेकेदार को ठेका खिलाने पिलाने से मिलता हो तो जितने लोग ठेकेदारी में लगे हैं उनके और उनके बच्चों के दीन ईमान का क्या होगा।  जब सरकार की व्यवस्था ऐसी हो कि एक धर्म के लोगों के,  या एक वर्ग के लोगों के,  vote bank नौकरियों में reservation के माध्यम से लाभ उठा जाएँ , तो हमारे आपसी भाई चारे का क्या होगा।  या जब सरकार की व्यवस्था ऐसी हो कि किसी दूसरे इंसान, नेता या अधिकारी ,  को हाथ जोड़ने से ही व्यक्ति आगे बढ़ पाए, तो आपकी सोच भगवान की व्यवस्था के बारे में कैसी होगी।

मैं इसीलिए चिंतित हूँ कि हमारा आज का system हमारा और हमारे बच्चों का ईमान ख़त्म कर रहा  है, हमें भ्रष्ट बना रहा  है, हमें सौदेबाज बना रहा  है। हमें अपने पर नहीं सरकार पर निर्भर बना रहा  है, हमारा आपसी प्यार ख़त्म कर रहा  है, और हमें गलत तरीके अपनाने की ओर ले जा रहा  है।

अन्यथा क्या आपका मानना है की हम भारतीय जन्म से ही भ्रष्ट है , या बेईमान हैं, या एक दूसरे से जलते हैं , घृणा करतें हैं।  नहीं ऐसा हमें हमारी सरकार की व्यवस्था बना रही है।

देखिये , यही भारतीय लोग जब एक अच्छी व्यवस्था में काम करते हैं  तो सबसे बेहतर लोग बन जाते हैं।  अमरीका में ऐसा ही है।  भारत के लोग वहां सबसे समझदार, ईमानदार, पढ़े लिखे, और सबसे अधिक कमाने वाले लोगों में गिने जाते हैं।

एक बहुत गलत प्रथा बन गयी है।  जब भी देश में कुछ गलत होता है तो हम कहते हैं कि हम लोग ही ऐसे हैं।  यह सरासर गलत है।  हमको ऐसा हमारी सरकार की व्यवस्था, राजनितिक व्यवस्था बना रही है।

आप लोग हमेशा कहते हैं कि हमारा system बड़ा ख़राब है।  यह बिलकुल सच है।

Presidential system में ऐसा क्या है जो हमें इन सब समस्यांओ से मुक्ति दिला सकता है

राष्ट्रपति प्रणाली क्या है? राष्ट्रपति प्रणाली को समझना मुश्किल नहीं है।  बहुत साधारण है … राष्ट्रपति, जैसे कि Trump, सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं।  भारत के प्रधान मंत्री की तरह MPs या party की  किसी high command द्वारा नहीं।  राष्ट्रपति सरकार का तीन मे से एक भाग,  जिसे कार्यपालिका या  Executive कहते हैं, उसे चलाते हैं।  इसी प्रकार MP, जिन्हे america में Congressmen कहा जाता है, वे भी जनता द्वारा सीधे चुन कर आते हैं।  वे सरकार का दूसरा भाग, विधायिका  या Legislature चलाते हैं।  राष्ट्रपति और विधायिका , president और legislature , एक दूसरे को हटा नही सकते, बल्कि  एक दूसरे का निरिक्षण, scrutiny  करते हैं। वे मिलकर सरकार के तीसरे भाग, न्यायपालिका की नियुक्ति करते हैं।

यही  model, center और state, दोनों में एक सा है।  इस प्रणाली की शक्ति बस इसमें है कि power को बाँट दिया गया है।  executive और legislative एक दूसरे पर नियंत्रण  रखते हैं।  और जनता को उन दोनों की power पर सीधा control दिया गया है।  चुनाव हर दो साल बाद होते हैं।

पर इतने से अंतर ने जमीन आसमान का अंतर खड़ा कर दिया है।  आज भारत के सन्दर्भ में राष्ट्रपति प्रणाली के बहुत लाभ दिख रहे हैं …

पांच मुख्य फायदों पर मैं बहुत छोटे मे कहना चाहूंगा …

पहला यह कि राष्ट्रपति प्रणाली की व्यवस्था  किसी को मनमानी नहीं करने देती। यह एक गलत धारणा है की president सर्वे सर्वा होता है।  President कोई कानून नहीं बना सकता।  वह अपने आप कोई नियुक्ति नहीं कर सकता।  उसका बजट legislature ,जो कि उसके control में नहीं है , वह पास करता है। वह लम्बे समय के लिए देश कि सेनाओं को कहीं युद्ध में नहीं झोंक सकता , सेनाओं के लिए धन पर उसका नियंत्रण नहीं है।  president का प्रदेश सरकारों पर भी कोई नियंत्रण नहीं।  वह उन्हें बर्खास्त नहीं कर सकता।  यहाँ तक कि वह अपनी cabinet को भी अकेला नियुक्त नहीं कर सकता।  उसका हर सदस्य , चाहे वह secretary  of defence हो , चाहे secretary of the treasury, वित्त मंत्री हो ,  सब senate द्वारा approve किए जाते हैं।

दूसरा लाभ , presidential system में अच्छे नेता उभर कर आ पाते हैं। उसके कई कारण हैं।  एक तो यह कि हर नेता सीधे जनता द्वारा चुना जाता है , बंद कमरों में नहीं।  दूसरा, उस व्यवस्था में शहरी अधिकारयों , जैसे कि mayor , से लेकर , प्रदेश के governor , senator , और president तक इतने अवसर हैं अच्छे नेताओं को अपनी क़ाबलियत दिखाने के , कि वे  अपनी पहचान बना पाते हैं ।  तीसरा, हर candidate primary election द्वारा चुना जाता है , party के bosses द्वारा नहीं।

Presidential system का तीसरा सबसे अहम् लाभ है , कि भ्रष्टाचार रोकने की इससे अच्छी व्यवस्था दुनिया में कोई नहीं।  उसका मुख्य कारण यह है कि separation of powers होने की वजह से , Congress (वहां legislature यानि parliament को Congress कहा जाता है) president और उसकी cabinet की पूरी scrutiny करती है।

चौथा लाभ , राष्ट्रपति प्रणाली में देश को जमीन से जुड़ा एक एजंडा बनाने में मदद मिलती है।   presidential election में कैसे बहस होती हैं, देश भर की जनता कैसे television के माध्यम से उन debates का हिस्सा बनती है।  यह सब आपने देखा है।

पांचवां, और शायद भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह कि, presidential system में  जाति और धर्म के आधार पर चलना संभव नहीं है।  चुनाव क्षेत्र अलग अलग और बड़े बड़े होने के कारण , जैसे कि senator का चुनाव पुरे प्रदेश से होता है, president का पुरे देश से, जाती या धर्म के आधार पर चुनाव जीत पाना संभव नहीं होता।

दो शब्द मैं presidential system  और अपने  parliamentary system के इतिहास के बारे मे कहना चाहूंगा ….

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एक तो यह कि राष्ट्रपति  प्रणाली अस्तित्व मे कैसे आयी।  इसे america के founders ने 1787 मे, सिर्फ इसलिए ईजाद किया कि कई generations  British प्रणाली मे रहने के बाद, उन्होंने  समझ लिया था कि ब्रिटिश प्रणाली एक बड़े और विविध देश के लिए, और एक सच्चे गणतंत्र के लिए, उचित नहीं।  उनकी संविधान सभा मे  इस पर बहुत चर्चा हुई।  आठ बार इस बात पर वोट डाला गया कि राष्ट्रपति legislature द्वारा चुना जाये, या सीधे जनता द्वारा।  हर बार बहस में राष्ट्रपति प्रणाली के लाभ और  निखरते चले आए।   और अंत में यही निर्णय निकला कि president पर legislature द्वारा control (जैसा कि  भारत में है ) सबसे खतरनाक व्यवस्था होगी।

दूसरा इतिहास, भारत की संविधान  सभा का है।  पटेलजी के नेतृत्व में provincial constitution committee ने यह प्रस्ताव दिया कि governor को सीधे जनता द्वारा चुना जाये।  परन्तु नेहरू जी की union constitution committee ने कहा कि राष्ट्रपति indirectly MPs द्वारा चुना जाये।  पटेलजी ने joint meeting बुलवाई जिसमे भारत के संविधान के निर्माण में लगे 36  सबसे बड़े लोग बैठे … नेहरूजी , पटेल  , ambedkar साहब , gobind vallabh pant , km munshi , syama prasad mukherjee , alladi krishnaswami ayyar , kriplani , jagjivan ram ये सब उपस्थित थे ।  june 10 और 11 1947 दो दिन चली इस बैठक में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि Nehruji को पुनर्विचार करना चाहिए।  राष्ट्रपति को सीधे जनता द्वारा चुना जाना चाहिए।  पर वह पुनर्विचार कभी नहीं हुआ।

बहुत से कारण हैं कि राष्ट्रपति प्रणाली भारत में लागू नहीं हो पाई।   हालाँकि उस वक्त खुद ब्रिटिश राय दे रहे थे कि विशुद्ध  संसदीय प्रणाली भारत के लिए उचित नहीं।  बहुत लोगो ने कहा।  महात्मा गाँधी, स्वयं ambedkar , jinnah , patel , संविधान सभा में मौजूद shibbanlal saksena , kt shah , सभा के बाहर सप्रूजी , बहुत जाने माने लोग कहते रहे।  परन्तु american प्रणाली की तरफ ध्यान नहीं दिया गया।

यहाँ तक कि, मेरा यह मानना है, कि यदि एक ऐसी प्रणाली सामने आई होती जिसमे majority और minority के बीच fairly,  power sharing हो पाती तो भारत का partition भी बच सकता था।  Jinnah संसदीय प्रणाली में बनी हर सरकार की व्यवस्था का विरोध इसीलिए करते थे।  1937 में जब provincial governments में उन्हें कोई power नहीं मिली तो उन्होंने irrevocable opposition का एलान कर दिया।  उन्होंने साफ़ कहा कि यदि  india में parliamentary system के अंतर्गत ही सरकार बनाई जाएगी, वह इसका विरोध करेंगे।  उसका सीधा सा कारण था।  parliamentary system में majority की सरकार बनती है और minority को कुछ नहीं मिलता है।  उसके बाद भी संसदीय व्यवस्था के अलावा किसी अन्य व्यवस्था के बारे में सोचा भी नहीं गया। और तीन सालों मे Pakistan एक किताबी बात से हकीकत बन गया।  यह पूरी कहानी मेरी  पुस्तक में है।

भारत आज भी यही गलती दोहरा रहा है

बहुत लोग कहते  रहें हैं कि अभी भी हमें राष्ट्रपति प्रणाली अपना लेनी चाहिए।  जरा उनके नाम सुनिए … jrd tata , km munshi 1963 में कह गए कि यदि दोबारा चांस मिले तो वे राष्ट्रपति प्रणाली के favor में वोट डालेंगे।  अंबडेकर जी ने तो राज्य सभा में ही कह दिया था, 1953 में, कि संसदीय प्रणाली किसी के हित में नहीं।  राज्य सभा में हाल ही में, 2012 में, rajiv pratap rudy एक प्रस्ताव लाये, कि राष्ट्रपति प्रणाली के  कुछ features को भारत को अपना लेना चाहिए।

आपको जान कर आश्चर्य होगा …. वाजपेयीजी ने 1998 में कहा कि हमें राष्ट्रपति प्रणाली की खूबियों की तरफ देखना चाहिए। उन्होंने संविधान के विश्लेषण के लिए एक committee बनाई , the committee for the review of the constitution , और बहुत सम्मानित supreme court chief justice , श्री venkatachalliah को नियुक्त किया।  विपक्ष ने हंगामा कर दिया कि parliamentary system से छेड़ छाड़ की जा रही है।  वाजपेयीजी को commission की terms में यह लिखवाना पड़ा कि commission केवल parliamentary system के दायरे में ही सुझाव देगी।  और यही हुआ।  परन्तु justice venkatachallia ने  बाद में कहा, और इस बात का प्रमाण मेरे पास है , कि यदि उन्हें राष्ट्रपति प्रणाली की पहले जानकारी होती तो शायद वे commission में नियुक्ति नहीं लेते।

और भी बहुत लोग हैं …   नानी पालखीवाला , खुशवंत सिंह , राष्ट्रपति वेंकटरमन, चिमनभाई मेहता, अरुण शूरी , रामकृष्ण हेगड़े, वसंत साठे , बाबूलाल मरांडी , और आजकल श्री शांता कुमार जी और शशि थरूरजी।

साथियो, अब समय आ गया है कि हम American system को सूझ भूझ से देखें।

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कुछ लोग राष्ट्रपति प्रणाली को इसलिए दुत्कार देते हैं कि वह यह समझते हैं कि राष्ट्रपति dictator होता है, या बन सकता है।  पर यह सच्चाई नहीं।  America के 230 वर्षों के इतिहास में कोई भी राष्ट्रपति dictatorial व्यवहार नहीं कर पाया है।  Trump जी के साथ क्या हो रहा है, आप सब देख ही रहे हैं।  मात्र दो हफ्ते के अंदर उस system ने Trump साहब के पर कतरने  शुरू कर दिए थे।

इस मामले में तो इस तरफ गौर कीजिये कि यह भारत की मौजूदा प्रणाली है, जिसने कितनी आसानी से प्रधान मंत्रियों को dictatorial तरीके से चलने दिया।  संसदीय प्रणाली अपनाने के 25 वर्षों में ही भारत में गणतंत्र ही समाप्त हो गया था, Indira gandhi जी की Emergency में।

कुछ लोग इसलिए American system को नकारते हैं क्योंकि वह capitalist society है।  Communist विचार धारा के लोग इसलिए उस तरफ नहीं देखना चाहते हैं क्योंकि वह  American है।  ज्यादातर लोग इसलिए भी राष्ट्रपति प्रणाली को नहीं अपनाना चाहते हैं क्योंकि इससे उनके स्वाभिमान या देश  के गौरव को ठेस लगती है।  यह सब उचित नहीं।  हम झूठे विचारों में डूबे अपने देश, अपने भविष्य, और अपने बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ न करें ।

Presidential system को कैसे अपनाया  जा सकता है

मैं इस बात से सहमत हूँ कि हमें भारत की अपनी जरूरतों के हिसाब से ही राष्ट्रपति प्रणाली को अपनाना चाहिए।  पर इसके सिद्धांत ईमानदारी से अपनाना हमारे हित में है।

क्या हैं इसके सिद्धांत …. separation of powers , federalism , direct election , judicial review …. क्या यह सब अपनाना हमारे लिए फायदेमंद नहीं?

इनमे से कुछ तो theoretically हमारे संविधान में आज भी हैं।  पर यह लम्बी बात है कि वह theory में हैं पर practice में क्यों नहीं हैं।  आपको एक handout आज दिया गया है जिसमे भारत के parliamentary system की theory और practice में अंतर दिखाया गया है।

पर क्योंकि सिद्धांत वही है भारत चाहे तो आज ही  presidential system अपना सकता है। dr subhash kashyap जी ने तो यहाँ तक लिखा है कि यदि नेहरूजी भारत के पहले प्रधानमंत्री न होकर president होते तो आज भारत में presidential system होता।  हालाँकि यह सच नहीं है , क्योंकि structural differences बहुत हैं।

पर मैंने भी अभी हाल में लिखा है कि  भारत का मौजूदा संविधान सुधारने का एक तरीका तो यह है कि हम मोदी जी को राष्ट्रपति बनने के लिए कहें।

पर presidential system अपनाने का सही तरीका तो यह है कि हम संविधान में संशोधन करें।  इसमें जो समस्या लोग समझते हैं कि basic structure का क्या होगा , वह समस्या नहीं है।  Kesavanand  में supreme court ने separation of powers को basic structure कहा है , parliamentary system को नहीं।

constitution में amendment करके चलने में जो असली समस्या है वो तो आज के नेता हैं जो parliament में बैढे हैं।  वह नहीं चाहते कि बदलाव हो।  इस सम्बन्ध में dr subhash kashyap का वक्तव्य सुनिए। उन्होंने, शांताजी, व शशि थरूर जी ने सबने खुल कर कहा है कि हमारे politician आज की व्यवस्था में खूब comfortable हैं।  वह बदलाव नहीं चाहते।

तीसरा तरीका एक नयी संविधान सभा बुलाने का है। इसमें भी यही दिक्कत सामने आती है कि इसको बुलाने और इसमें बैठने वाले वही लोग होंगे जो बदलाव नहीं चाहते हैं।   पर यहाँ यह संभावना है कि कुछ राज्य इकठ्ठे होकर नया संविधान बनाने की मांग करें, तो शायद बदलाव संभव हो जाये।

पर इस सबमे राष्ट्रपति प्रणाली न अपनाने का कमसे कम एक तर्क तो मैंने अपने प्रयासों से हटा दिया है।  अब मेरी  पुस्तकों  के माध्यम से भारत की जनता को पूरी जानकारी उपलब्ध है।  उनके आलावा आप आगे जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट presidentialsystem.org पर जा सकते हैं।  और आप मुझे twitter पर भी follow कर सकते हैं।  मेरा twitter handle मेरा पूरा नाम ही है।

आपको यह भी जानकर आश्चर्य होगा कि parliamentary system अपनाने से पहले हमारी संविधान सभा में केवल एक तर्क दिया गया था … familiarity, कि हम इस system से वाकिफ हैं। और यह तर्क भी नेहरूजी या अम्बेडकर जी ने नहीं दिया।  इसे पटेलजी ने कहा था। अम्बेडकर का famous stability versus responsibility वक्तव्य तो बाद में जब संविधान पूरा लिखा जा चुका था तब आया।  इस भाषण में अम्बेडकर ने यह कहने की कोशिश की कि parliamentary system इसलिए अपनाया जा रहा है क्यूंकि यह ज्यादा जवाबदेह सरकारें देता है, बजाय presidential system के।  presidential system ज्यादा स्थिर सरकारें देता है पर कम responsible.

वैसे तो भारत के इतिहास ने ही अम्बेडकर को गलत साबित कर दिया है।  पर stability vs responsibility पर पूरे तर्क मैंने किताब में दिए हैं … कि responsible सरकार का अर्थ यह नहीं होता कि सरकार हटाई जा सकती है बल्कि यह कि सरकार को गलत काम करने से रोका जा सकता है।

तो साथियो , अब पूरी जानकारी presidential और parliamentary systems के बारे में उपलब्ध है।  मेरा पूरा विश्वास है कि आप यदि तुलना करेंगे तो कोई सवाल ही नहीं रह जाता कि presidential system अपनाने में ही भारत का, हमारे बच्चों का, भविष्य उज्जवल है।  मेरा पूरा विश्वास है कि भारत को उन उंचाईओं तक पहुंचाने के लिए आप यह तुलना करेंगे।

एक महान देश के नागरिकों के लिए यही उचित है कि वह इसमें रूचि लें और हाथ बंटाएं।  इसी प्रार्थना और आशा के साथ, मेरा आपको धन्यवाद।

वन्दे मातरम

 

संविधान जो खुद को नहीं बचा सका वह देश को क्या बचायेगा – दैनिक ट्रिब्यून

भारत को चाहिए राष्ट्रपति प्रणाली : भानु धमीजा – The India Post

चंडीगढ़ में राष्ट्रपति प्रणाली की धमक – दिव्य हिमाचल

भारत को चाहिए राष्ट्रपति प्रणाली : भानु धमीजा – पंजाब केसरी

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