भारत में राष्ट्रपति प्रणाली : कितनी जरूरी, कितनी बेहतर
पहली बार यह रोमांचक कहानी बताती है कि भारत सरकार की मौजूदा प्रणाली वास्तव में अस्तित्व में कैसे आई। और कैसे यह भारत की समस्याओं का मूल कारण बन गई है। वर्षों के गहन शोध पर आधारित यह पुस्तक भारत के भविष्य को लेकर एक आमूल पुनर्विचार की जोशीली दलील पेश करती है। यह मात्र पर्दाफाश नहीं कि गलत क्या है, बल्कि एक हल प्रस्तुत करने का गंभीर प्रयास है।
(प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन, लेखक: भानु धमीजा)
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‘ठोस शोध और अकाट्य तर्कों पर आधारित बखूबी लिखी पुस्तक’
– शशि थरूर
‘तर्क कुशलता से प्रस्तुत किए गए हैं… यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगी’
– कुलदीप नैयर
‘एक महत्त्वपूर्ण और सामयिक पुस्तक… राष्ट्रपति प्रणाली के कई लाभों पर प्रकाश डालती है कि कैसे यह भारत के लिए सही प्रणाली हो सकती है’
– शांता कुमार
‘अति उत्तम पुस्तक… बेहतरीन शोध’
– सुभाष कश्यप, भारत के विशिष्ट संवैधानिक विद्वान्
‘व्यवस्था में परिवर्तन के ऐसे ठोस और अकाट्य तर्क पहले कभी नहीं देखे। बहुत विचार प्रेरक पुस्तक’
– जग सुरैया, टाइम्स ऑफ इंडिया
नंबर-1 बेस्टसेलर
– दि ट्रिब्यून, दिल्ली
ऐमजॉन बेस्टसेलर (‘सरकार श्रेणी’ में नंबर 3)
– ऐमजॉन (इंडिया)
भारत द्वारा संसदीय प्रणाली अपनाने का विरोध समय-समय पर डॉ. अंबेडकर, महात्मा गांधी, एम.ए. जिन्ना, सरदार पटेल और अन्य कई शीर्ष नेताओं ने किया था। इतिहास ने उन्हें सही साबित किया है। भारत की विविधता, आकार और सांप्रदायिक जातिगत विभाग के कारण देश को एक वास्तविक संघीय ढाँचे की आवश्यकता थी- केंद्रीकृत एकल नियंत्रण की नहीं, जो कि संसदीय प्रणाली प्रस्तुत करती है।
280 पृष्ठ | हार्डकवर: ₹ 500 | पेपरबैक : ₹ 300
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समीक्षा… भारत के भविष्य की जोशीली दलील
Book in English… Why India Needs the Presidential System
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