‘भारत में राष्ट्रपति प्रणाली : कितनी जरूरी, कितनी बेहतर’ पुस्तक के लेखक भानु धमीजा से आकाशवाणी रेडियो धर्मशाला केंद्र के सुमित शर्मा की बातचीत …
इस इंटरव्यू से …
जहां से इस किताब का एक बीज रोपा गया वह यही था कि तुलना, कि यहां इस सिस्टम में क्या है जो ऐसे हालात बना रहा है। और बाहर विदेशों में क्या है जो दूसरे प्रकार के हालात बना रहा है…
शक्तियों का अगर बैलेंस ठीक हो जाए किसी भी प्रणाली में तो राजनेता भी सुधर जाएंगे, जनता भी सुधर जाएगी…
अमेरिकन सिस्टम किसी एक व्यक्ति को मनमानी नहीं करने देता। यह भ्रम है यहां राष्ट्रपति सिस्टम के बारे में कि वहां राष्ट्रपति सर्वेसर्वा होता है, या एकल वहां एकछत्र शासन होता है। यह सब गलत है…
उस प्रणाली में अच्छे नेताओं को उभरकर आने का अवसर मिलता है। उसके बहुत से कारण हैं। एक तो यह कि वह बहुत विकेंद्रीकृत प्रणाली है। उसमें बहुत से ऐसे आफिशियल्स हैं, जो चुनकर आते हैं। डायरेक्टली जनता द्वारा चुनकर आते हैं…
राष्ट्रपति प्रणाली से बेहतर शायद ही ऐसी कोई प्रणाली है दुनिया में, जो भ्रष्टाचार पर लगाम लगाती है। उसका भी एक बड़ा छोटा सा, एक सिंपल सा कारण है। वह यह कि उस प्रणाली में जो कार्यकारी है, वह न्यायपालिका से और जो विधायिका है, उससे बिलकुल अलग-अलग है। सेपेरेशन ऑफ पॉवर्स जिसे कहते हैं…
वहां कोई भी लेजिस्टलेचर का सदस्य चाहे किसी भी पार्टी का हो, वह एम्पावर्ड है। वह अकेला भी खड़ा होकर एक विधेयक ला सकता है और उसके लिए सहमति बना सकता है कि कार्यकारिणी को किसी भी काम से रोका जाना चाहिए…
[Interview broadcast 23 April 2017]
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