पुस्तक समीक्षा
अनिल अग्निहोत्री
भारत द्वारा संसदीय प्रणाली अपनाने का विरोध समय-समय पर डॉ. अंबेडकर, महात्मा गांधी, एम.ए. जिन्ना, सरदार पटेल और अन्य कई शीर्ष नेताओं ने किया था। इतिहास ने उन्हें सही साबित किया है। भारत की विविधता, आकार और सांप्रदायिक जातिगत विभाजन के कारण देश को एक वास्तविक संघीय ढांचे की आवश्यकता थी – केंद्रीकृत एकल नियंत्रण की नहीं, जो कि संसदीय प्रणाली प्रस्तुत करती है।
भानु धमीजा की पुस्तक ‘भारत में राष्ट्रपति प्रणाली: कितनी जरूरी, कितनी बेहतर’ पहली बार यह रोमांचक कहानी बताती है कि भारतीय सरकार की मौजूदा प्रणाली वास्तव में अस्तित्व में कैसे आई। और कैसे यह भारत की समस्याओं का मूल कारण बन गई है। वर्षों के गहन शोध पर आधारित यह पुस्तक भारत के भविष्य को लेकर एक आमूल पुनर्विचार की जोशीली दलील पेश करती है। यह मात्र पर्दाफाश नहीं कि गलत क्या है, बल्कि एक हल प्रस्तुत करने का गंभीर प्रयास है।
प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘भारत में राष्ट्रपति प्रणाली’ कई गंभीर व मूलभूत प्रश्न ही नहीं उठाती, बल्कि भारतीय राजनीतिक इतिहास के कई चौंकाने वाले रहस्य भी उजागर करती है। इसके साथ ही पुस्तक बताती है कि कैसे अमरीका की राष्ट्रपति प्रणाली हमारे देश में संसदीय प्रणाली का आदर्श विकल्प साबित हो सकती है। पुस्तक जिन ज्वलंत मसलों को पुष्ट संदर्भों और अकाट्य तर्कों के साथ विस्तार से बताती है, उनमें ये शामिल हैं-़
- राष्ट्रपति प्रणाली से मोदी को फायदा पर वह शायद ही इसे अपनाएं (पृष्ठ-17)
- संसदीय प्रणाली से आहत जिन्ना ने रखी पाकिस्तान की नींव (पृष्ठ-59)
- नेहरू की व्यक्तिगत पसंद ने देश पर थोपी संसदीय प्रणाली (पृष्ठ-80)
- अंबेडकर का तीन साल में ही हुआ संसदीय प्रणाली से मोहभंग (पृष्ठ-99)
- कुकरमुत्तों की तरह राजनीतिक दल पैदा कर रही है संसदीय प्रणाली (पृष्ठ-144)
- सरकार का सीमित दखल चाहता था अमरीका, इसलिए नकारी संसदीय प्रणाली (पृष्ठ-203)
- अमरीकी राष्ट्रपति का तानाशाह होना किसी सूरत संभव नहीं (पृष्ठ-249)
- भारत की अधिकांश समस्याओं का समाधान है राष्ट्रपति प्रणाली (पृष्ठ-269)
‘भारत में राष्ट्रपति प्रणाली : कितनी जरूरी, कितनी बेहतर’, की कई गणमान्य हस्तियों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। सांसद व लेखक शशि थरूर, लोकसभा सांसद एवं विचारक शांता कुमार एवं प्रसिद्ध लेखक कुलदीप नैय्यर आदि के मुताबिक किताब में तर्क कुशलता से प्रस्तुत किये गए हैं। उनका मानना है कि पुस्तक मील का पत्थर साबित होगी। भारत के विशिष्ट संवैधानिक विद्वान सुभाष कश्यप ने इसे अति उत्तम पुस्तक व बेहतरीन शोध करार दिया है।
लेखक भानु धमीजा का कहना है कि भारत में संसदीय शासन प्रणाली के कारण एक महान समाज दुर्बल हो रहा है। भारत के नागरिक जीवन की दयनीय स्थिति और अप्रतिष्ठित सरकारी संस्थाओं से जूझ रहे हैं। इसका परिणाम है, वे नैतिक रूप से लगातार कमजोर हो रहे हैं। उन्होंने कहा है कि इस स्थिति पर शोक मनाने या केवल टिप्पणी करने के बजाय उन्होंने कुछ ठोस करने का निर्णय किया। और इसी संकल्प का परिणाम है- ‘भारत में राष्ट्रपति प्रणाली: कितनी जरूरी, कितनी बेहतर।’ भानु धमीजा पुस्तक को भारत को बचाने का एक पवित्र और हृदयस्पर्शी प्रयास करार देते हैं। ‘भारत में राष्ट्रपति प्रणाली: कितनी जरूरी, कितनी बेहतर’ के प्रकाशक है प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली। पिछले पचास वर्षों में हिंदी भाषा में पांच हजार से ज्यादा पुस्तकें छापकर प्रभात प्रकाशन देश में प्रमुख प्रकाशक के रूप में स्थापित हैं। उल्लेखनीय है कि प्रभात प्रकाशन से एपीजे अब्दुल कलाम, अटल बिहारी वाजपेयी, एलके आडवाणी, बराक ओबामा, प्रेमचंद, विष्णु प्रभाकर, मृदुला सिन्हा आदि प्रख्यात हस्तियों की पुस्तकें छप चुकी हैं।
यह पुस्तक समीक्षा रविवार दिल्ली के अप्रैल 2017 अंक में प्रकाशित हुई है।
‘भारत में राष्ट्रपति प्रणाली: कितनी जरूरी, कितनी बेहतर’ अब ऐमज़ॉन पर उपलब्ध
भारत में राष्ट्रपति प्रणाली : कितनी जरूरी, कितनी बेहतर
Why India Needs the Presidential System
Comments are closed.